Tarapith West Bengal
Tarapith West Bengal:स्थानीय भाषा में तारा का अर्थ है, आंख और पीठ का अर्थ है स्थल, यानी मंदिर आंख की स्थल पर पूजा जाता है। मां तारा का दिव्य धाम तारापीठ है। तारापीठ हिंदुओं की एक पवित्र धार्मिक स्थल है ।भारत के पश्चिम बंगल राज्य सरकार के पर्यटन विभागों में एक पर्यटन विभाग(tourism department) तारापीठ भी है।
Visit Our news website – Click Here
तारापीठ में मां तारा काली माता का मंदिर है, और साधक के साधन पीठ बामाख्यापा के लिए प्रसिद्ध है ।यह तारापीठ मंदिर बीरभूम जिले के रामपुरहाट के पुलिस थाने के तहत एक गांव तारापुर में स्थित है। लोगों के अनुसार सती की आंख की तारा यहां गिरी थी, इसलिए इस स्थान को तारापीठ कहा जाता है।

एवं अन्य लोगों का कहना है कि यह तारापीठ नहीं है, क्योंकि इस स्थान की पवित्रता ऋषि वशिष्ठ ने मां तारा के रूप में देवी सती की पूजा की थी ,इसलिए इस स्थान को तारा के पीठ कहा जाता है। उसी समय से ही मां तारा की पूजा प्रारंभ होता है। पुरोहितों (priests)के अनुसार तारापीठ की महिमा है , जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति के साथ देवी का ध्यान करके मन्नत मांगता है वह जरूर पूर्ण होती है।
Also Read- Click Here
Tarapith West Bengal
देवी तारा की सेवा और आराधना से सभी दुखों की मुक्ति मिलती है। यहां पर स्थित वशिष्ठ ऋषि की सिंहासन(the throne) पर अनेक साधुको ने सिद्धियां प्राप्त किए हैं। परंतु वशिष्ठ ऋषि के लिए मां तारा की सिद्धि प्राप्त करना इतना आसान नहीं था ,उन्होंने मां को पाने के लिए चिरकाल तक तपस्या(penance) किए हैं।
Visit Our news website – Click Here
फिर भी मां तारा की कृपा प्राप्त करने में असफल रहे ।बाद में जाकर वशिष्ठ ऋषि को मां की प्राप्त करने की विधि प्राप्त हुई थी ।देवी की मूर्ति की रूप दो हाथ होते हैं और गले में सांपों की माला है तथा मालाओं से सुशोभित सजा हुआ है। वहां के पुरोहितों के अनुसार देवी आपने खून की वासना को संतुष्ट करने के लिए प्रतिदिन प्रसाद देना पड़ता है। इसलिए तारापीठ मंदिर में हर सुबह की तारापीठ के और भी जानकारी के लिए इस पोस्ट में विस्तारित मिल जाएंगे।
सिद्ध पीठ मां तारा देवी यह शक्तिपीठ बोलपुर की शांतिनिकेतन से आगे रामपुरहाट के पास स्थित है। इस तारापीठ का प्राचीन(ancient) नाम कामकुटी था। यह स्थल तंत्र मंत्र साधना हेतु संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि देवी तारा जागृत रूप में विराजमान है। पुराणों (Puranas)के अनुसार यह शक्तिपीठ है, पर यह बामन पीठ में सम्मिलित नहीं है।

Tarapith West Bengal Secret
यह सती का तीसरा नेत्र महा शमशान (burial sites)के भीतर एक श्वेत वृक्षों (white trees)के नीचे गिरा था ,वहीं पर देवी तारा विद्वान है मंदिर के ऊपर एक सुंदर शिखर है इसके नीचे तारा देवी की चमत्कारी प्रतिमा(image) स्थापित है। मंदिर के पास टीन के द्वारा ढाका एक छोटा मंडप है जहां भक्त पूजा अर्चना(Worship and all) हेतु एकत्रित होते हैं।
मंदिर के चारों ओर एक जंगल और हरियाली वातावरण(green environment) है, जहां योगी तंत्र मंत्र साधन में लिप्त होते हुए देखे जा सकते हैं। देवी की प्रतिमा पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देती है, क्योंकि देवी की प्रतिमा मालाओं से पूर्ण ढकी रहती है, और केवल मात्र मुंह ही देखा जा सकता है ।मंदिर में प्रातः 4:00 बजे आरती होती है जहां पुजारियों के साथ भक्तगण भी देवी की चरण धो सकते हैं।
इस पूजा की आरती में आज भी शब की ताजी भस्म (fresh cremation) का प्रयोग होता है, और कई वर्षों से प्रतिदिन भस्म आरती होती रहती है और तारापीठ में ऐसा कभी नहीं हुआ की शब आरती के बिना देवी की पूजा हो। देवी तारा माता का दर्शन रात्रि 9:00 बजे से 9:30 बजे तक ही होते हैं। गर्भगृह में एक बार में मात्र 9 भक्त ही अंदर प्रवेश कर सकते हैं। मां पर केवल कमल पुष्पों (lotus flowers)ही चढ़ाया जाता है।

Tarapith West Bengal|| महिमा और महत्व
वर्तमान में जो तारापीठ मंदिर है ना ही ज्यादा बढ़ा है ना ही ज्यादा छोटा है। मंदिर का द्वार अच्छी तरह से सुंदर कारीगर का भारतीय कलाकार(artist) का नमूना पेश करते हैं। मां तारा के मुंह पर तीन आंखें है, और मुख सिंदूर से रंगा हुआ है, साथ ही हर अनुपम छवि सजाए जाते हैं। पास में ही शिव जी की प्रतिमा है। मंदिर में प्रसाद के रूप में मां को स्नान कराने वाले जल को प्रसाद में दिया जाता है साथ ही हर अनुपम छवियों को सजाया जाता है।
यह माना जाता है कि शक्ति पीठ की स्थापना उन्हीं स्थानों पर हुई है, जहां सती के अंग पृथ्वी पर गिरे थे वही शक्तिपीठ हुए। कथा के मुताबिक सती देवी के तीन नेत्रों की तारा तीन स्थान पर गिरे। जहां बैद्यनाथ धाम की पूर्व दिशा में उत्तर वाहिनी नदी द्वारका में पूर्वी तट पर महा शमशान है श्वेत शिमूल वृक्षों के मूल स्थान में सती का तीसरा तारा गिरा था ।
उसी जगह उग्रतारा तारापीठ सिद्ध है। इसके अलावा अन्य दो तारापीठ भी है ,मिथिला के पूर्व दक्षिणी कोने में भागीरथी की उत्तर दिशा में त्रियोगी नदी(Triyogi River) के पूर्व दिशा में सती देवी के बाय नेत्र की मोनी गिरे हैं, तो यह स्थान नील सरस्वती तारा देवी नाम से जाना जाता है ।
Tarapith West Bengal ||तथा शक्तिपीठ
Bogra जिला के अंतर्गत Karatoyaनदी के पश्चिम दिशा में सती के दाएं मुनि गिरे थे, तो यह एक जटा तारा और भवानी तारापीठ के नाम से प्रसिद्ध है। एक अन्य कथा अनुसार गौतम बुद्ध(Gautam buddha) के बुध अवतार से जोड़ते हैं ।तारा की उपासना बुद्ध संप्रदाय में काफी प्रचलित है। बंगाल में बीरभूम में मौजूद मां तारा के धाम के दर्शक कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
शंख के पवित्र शब्द से गूंजता मां का दरबार देवी दर्शन को अतुल श्रद्धालुओं की भीड़ माता के गीतों को गाते हुए गुनगुनाते हुए भक्त मन में भक्ति और आंख में पल भर मां को देखने की चाहत मां तारा के मंदिर में एक अलग एक अलौकिक नजरिया दिखाता है। जोकि भक्तों की भक्ति की रस मेंडूबा देता है।
Tarapith West Bengal || पूजा पाठ
तारा मंदिर प्राकृतिक (natural)कारण से दो बार नष्ट हो गया था, पर चमत्कारिक रूप से मां की मूर्ति का कोई नुकसान नहीं पहुंचता था ।इसके बाद भक्तों ने दोबारा इस मंदिर का निर्माण करवाया। पौराणिक कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है ,की इस मंदिर में मौजूद मां तारा की प्रतिमा की गोद में भगवान से आज भी विराजमान हैं।सुबह-सवेरे सबसे पहले मां तारा को स्नान करवाया जाता है, जिसमें गुलाब जल, गंगाजल, शहद, घी , जवाकुसुम का तेल प्रयोग किया जाता है। मातारा को मुकुट केस सिंदूर और बिंदी लगाकर भव्य रूप में तैयार किया जाता है।
Visit Our news website – Click Here